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Wednesday 20 April 2016

लोकतंत्र का पर्व



चुनाव : लोकतंत्र का पर्व !! या सिर्फ मदारी का खेल !!

        कितना अच्छा होता !! समाज में धीरे-धीरे ही सही परन्तु एक सकारात्मक बदलाव आता और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को सुनने, दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, स्वेच्छा से लाखों की संख्या में, आम जनता पहुँचती और “जिंदाबाद”, “मुर्दाबाद” और “हाय-हाय’ के नारों के उद्घोष के विपरीत, प्रमुख नेताओं को धैर्यपूर्वक सुनती, लुभावने भाषणों का स्व मूल्यांकन करती !! नेताओं से उनके लोक लुभावनी योजनाओं की कार्य योजना व उन योजनाओं की सफलता हेतु अपेक्षित संसाधनों की उपलब्धता व स्रोतों के बारे शालीनतापूर्ण व द्वेषरहित माहौल में खुले मन से प्रश्न करती !!
         शायद इस प्रक्रिया से चुनाव रैलियों, प्रचार व अन्य चुनाव आधारित अनियंत्रित व्यय पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है क्योंकि चुनाव पर होने वाला प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष व्यय अन्ततोगत्वा आम आदमी की ही जेब ढीली करता है.इससे समाज में ध्रुवीकरण को पोषित करने वाले वक्तव्यों, जो कई बार जातिवादी व धार्मिक उन्माद या असंतोष में परिवर्तित होकर सामाजिक सौहार्द पर कुठाराघात करती हैं, पर लगाम लग सकती है.
        रैली किसी भी राजनीतिक दल की हो, वहाँ जनता, जिस राजनेता को सुनने पहुंचती है उसके बारे में स्वप्न में भी नकारात्मक नही सुनना चाहती !!
      मेरे विचार से हमारे देश में विकसित “ लोकतंत्र “ में यही सबसे बड़ी कमी है !! यहाँ हम जिस राजनीतिक दल से भावनाओं से जुड़े हैं उस दल या व्यक्ति के बारे में कुछ भी नकारात्मक (भले ही वह सत्य तथ्यात्मक व व्यावहारिक सत्यता लिए ही क्यों न हो) सुनते ही आवेशित हो उठते हैं !! और कुतर्क पर उतारू हो जाते हैं !
       अगर वर्तमान ढर्रे पर ही हमारा लोकतंत्र चलता रहा तो रोज़ नए मदारी द्वारा, सांप नेवले की लड़ाई दिखाने की आस में हम उसकी तरफ आकर्षित होते रहेंगे और वो दूसरे मदारियों की तरह, अपने चिर-परिचित, घिसे-पिटे देखे-दिखाए खेल दिखाकर, अपनी गठरी बांधकर आगे बढ़ जाएगा. क्योंकि मदारी की भी मजबूरी है !! सांप नेवले की लड़ाई दिखाकर वह कभी अपनी रोज़ी-रोटी को समाप्त नही करना चाहेगा !! सांप ही उसकी रोज़ी-रोटी का जरिया है !! जिसे बार-बार दिखाकर वह आम जनता को इकठ्ठा करता है !! इस लडाई के बाद आम जनता को आकर्षित करने वाला सांप, नेवले द्वारा मारा दिया जाएगा !!
    ये तो मेरी मूढ़ बुद्धि की एक निजी संकल्पना मात्र है !!
     बहरहाल छोड़िए ये सब बेकार की बातें हैं !!
चलते हैं !! चौक में “ डुग-डुगी “ की आवाज़ और बच्चों के कौतूहलपूर्ण स्वर ऊँचे होते जा रहे हैं !! शायद फिर कोई नया मदारी आया है !! आज ये मदारी तो जरूर-जरूर “ सांप-नेवले “ की लडाई दिखायेगा !! 


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