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Saturday 2 April 2016

निट्ठल्ला चिंतन !!



निट्ठल्ला चिंतन !!

                 व्याकरणाचार्यों ने हर युग में और मानव की रग-रग प्रचुरता से व्याप्त व लोकप्रिय “निंदा रस” को प्रेम, श्रृंगार, वीर, रौद्र आदि रसों के साथ स्थान न देकर न जाने क्यों सदैव भेदभाव किया !! सृष्टि की उत्पत्ति से निरंतर इस रस के द्वारा पीड़ित व्यक्ति अपने मन के गुबार को बाहर निकालता है।     
          कभी-कभी व्यक्ति की स्वार्थ-सिद्धि में जिसने बाधा पहुँचाई, उसी के विरोध में रस के माध्यम से वह अपने गुबार को बाहर निकालता है. व्यक्ति के अंतर्मन को शांति पहुँचाने में इस रस की महती भूमिका है !!
          संभवत: वैचारिक आदान-प्रदान के दौरान जब किसी व्यक्ति यासमूहों की स्वार्थ-सिद्धि न हो पाई होगी तब इस रस की उत्पत्ति अंतर्मन से हुई होगी ! वैचारिक असमानता के कारण व्यक्तिगत स्वार्थों की तुष्टि न हो पाने की स्थिति में इस रस में भीगे तीक्ष्ण बाण पूरे समाज को ‘भेदन, कर सकने की अतुल्य सामर्थ्य रखते हैं!!
        बड़े-बड़े रजवाड़ों को छिन्न-भिन्न करने वाले इस रस से भीगे बाणों का कैकयी द्वारा प्रयोग और उनकी तीक्षणता और अचूक भेदन क्षमता पर भला कौन प्रश्न चिह्न लगा सकता है !! और तो और माता सीता के सतीत्व पर प्रश्न चिह्न भी इसी रस की परिणति थी !
        खैर ये तो गुजरे ज़माने की बातें हो गयी. आजकल ऑफिसों, कंपनियों में जिस कर्मचारी के पास इस रस का भण्डार है और सही समय पर यदि उसे इस रस में भिगोकर सही समय पर तीर चलाने में निपुणता है !! तो बिना काम किये वह अधिकारियों का कृपापात्र, विश्वास पात्र और आँखों का तारा बना रहता है !   राजनीतिक दलों व उनके समर्थकों में योग्यता की पहली पायदान “निंदा रस” में निपुणता ही है !!
        लगता है मैं भी कहीं न कहीं इस रस की महानता को दरकिनार कर रहा हूँ ! खैर मुद्दे पर आता हूँ इस रस का परोक्ष प्रयोग, स्वस्थ मनोरंजन एवं समय व्यतीत करने का सरल व सुलभ साधन है.क्या विद्वान् ! क्या अविद्वान !!सभी इस रस के छलकते प्यालों को देखकर रस को उदरित करने का लोभ संवरण नही कर पाते !! एक संयुक्त परिवार से कई एकल परिवार निर्माण में तो इस रस का कोई भी रस बराबरी नही कर सकता !!
      आलेख कुछ दीर्घ सूत्री सा होता प्रतीत हो रहा है !! बस यह कह कर अपनी बात को विराम देना चाहूँगा कि अंतर्मन की शांति को ही वास्तविक शांति कहा गया है और मानव की रग-रग में व्याप्त, अतुल्य सामर्थ्यवान “ निंदा रस “ इस कसौटी पर हर तरह से खरा उतरता है !!! तो क्यों न इस रस को अन्य रसों की तरह सम्मानित स्थान प्रदान किया जाय !! 

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