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Friday 15 January 2016

लोकतंत्र !! या ........... !!




लोकतंत्र  !! या ........... !!

साहिल से टकरा कर कब ... ठहरी है मौजों की मस्ती !
टकराना उनकी फितरत और चोट देना साहिल की हस्ती !!
.. विजय जयाड़ा
 
              लोकतंत्र में नागरिकों द्वारा किसी मांग की उपयोगिता और अनुपयोगिता का मानदंड, उस मांग के पक्ष में खड़े नागरिकों का संख्या बल है !! अर्थात लोकतंत्र में सिर गिने जाते हैं !! एक ओर मंगल पर बसने की छटपटाहट और दूसरी ओर .. विचार से अधिक संख्या बल को तरजीह !! सौभाग्य कहा जाय या दुर्भाग्य !! खैर..ये एक अलग विषय है ... 


               बहरहाल, संख्या बल के उचित छायांकन द्वारा ही इलैक्ट्रोनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया के माध्यम से सम्बंधित पक्षों को प्रत्यक्ष व प्रभावशाली सन्देश भी दिया जाता है .. जिससे बाद ही उनकी कुम्भकर्णी नींद खुलती है !! 


                इसी क्रम में कल तीन माह के बकाया वेतन को शीघ्र जारी करने की मांग के पक्ष में खड़े दिल्ली के सभी संवर्गों के निगम कर्मचारियों द्वारा सम्मिलित रूप से ऐतिहासिक संख्या बल द्वारा सामूहिक असंतोष व आक्रोश प्रदर्शित करने के उद्देश्य से सिविक सेंटर, अजमेरी गेट से जंतर मंतर तक विशाल ऐतिहासिक शांति मार्च निकाला गया ..


                हालांकि मैं पेशेवर फोटोग्राफर नहीं और न ही मेरे पास बहुत एडवांस कैमरा ही है !!लेकिन संख्या को प्रदर्शित करने के लिए मैंने कभी मीडिया वैन का तो कभी ऊंचे फ्लाई ओवर की साइड प्रोटेक्शन का सहारा लिया. कनाट प्लेस में ऑटो पर चढ़कर क्लिक कर रहा था कि अचानक रास्ता मिलते ही ऑटो मुझ लटके हुए को लेकर आगे बढ़ गया !! 


               समूह में स्वयं की भागीदारी सुनिश्चित करना और साथ ही पूरे जन सैलाब का छायांकन करना, परिश्रमपूर्ण कृत्य महसूस हुआ .. क्योंकि यहाँ विशाल जनसमूह को सड़क पर एकाएक कवर करने के लिए ऊंचा स्थान मिल पाना कठिन होता है ..


               सफल छायांकन भी आन्दोलन को गति प्रदान करता है .. संख्या बल का प्रभावी छायांकन करने में मैं कितना सफल हो पाया ! हर तस्वीर को देखकर ज्यादा सटीक मूल्यांकन तो आप ही कर सकते हैं !! 

Wednesday 6 January 2016

अंतर्मन !!



अंतर्मन !!

धरती के आँचल में हर पल रहते हैं,
   हर मौसम और हाल में हम खुश रहते हैं !!

                  31 दिसंबर को नववर्ष की पूर्व संध्या पर जंतर मंतर, कनाट प्लेस पर बहुत से पर्यटक आये हुए थे .. दुनिया से बेखबर कई प्रेमी युगल सपनों के असीमित संसार में कल्पनाओं की उड़ान भरते आपस में खोये हुए दिख रहे थे. 

                वहीँ ये परिवार, दुनिया की चकाचौंध से बेखबर, जिस लॉन पर लोग चहलकदमी कर रहे थे, उस पर उग आई चंदोली घास को चुनकर शाम की सब्जी का इंतजाम करने में मशगूल था !! खुश था .. अपने हकीकत भरे छोटे से संसार में !! 


                   बड़े-बड़े दावों के बीच नयी-नयी सरकारें बनती होंगी.. उससे इनको क्या सरोकार !! इनका तो यही क्रम विगत तीन वर्षों से चल रहा है ..शायद दुनिया एक जगह ठहर गयी है !!
                   कितना अंतर है ना !! कल्पना के संसार में और हकीकत के संसार में !!! जरूरी नहीं कि कल्पना, मूर्त रूप ले पाए अगर मूर्त रूप ले भी तो न जाने कितना समय लगे !! लेकिन जो मूर्त है उसके लिए न कल्पना की आवश्यकता है न समय का इन्तजार !!! शायद इसी लिए संतों ने वर्तमान में जीने की सलाह भी दी है..

Sunday 3 January 2016

उत्तराखंड की स्वस्थ परम्पराएँ .. दोण-कंडू




उत्तराखंड की स्वस्थ परम्पराएँ .. दोण-कंडू

        आज धर्मपत्नी मायके, ऋषिकेश, से लौट आयी ख़ास बात ये थी कि मायके से दोण और कल्यो (कलेवा) भी साथ में लायी.. जिसे स्थानीय भाषा में सम्मिलित रूप में ". दोण-कंडू " भी कहा जाता है .. ख़ास बात इसलिए .. क्योंकि फटाफट जीवन शैली और बढती क्रय क्षमता के दौर में उत्तराखंड की ये स्वस्थ परंपरा लगभग समाप्त सी होती जा रही है !!
         ये मात्र खाद्य सामग्री ही नहीं इसमें माँ और पूरे मायके का प्यार रचा-बसा होता है क्योंकि अर्से और रोट बनाना सहज कार्य नहीं इसमें निपुणता, लगन व परिश्रम की आवश्यकता होती है. अर्से (चावल का आटा+ गुड़ चाश्नी+ तेल में तलना) और रोट ( गेहूं का आटा+मोइन+गुड़ का पानी+ सौंफ+ नारियल+ तलना) को काफी समय तक रखकर उपयोग किया जा सकता है.
        पुराने समय में मायके से बेटी को ससुराल के लिए विदा करते समय दोण (राशन) व कल्यो के साथ विदा किया जाता था. जो लम्बे पैदल मार्ग में नाश्ते के रूप में और ससुराल पहुंचकर बेटी के परिवार के उपयोग में आता था. साथ ही बेटी इस रूप में मायके का प्यार आसपास पा लेती थी. आज भी ये परंपरा उन क्षेत्रों में कायम है जो बाजार से दूर हैं.
        आज की तेजरफ्तार जिंदगी और बढ़ी क्रय क्षमता के दौर में भी शुद्धता व पौष्टिकता लिए परंपरा, प्रासंगिक है ... हमें अपनी माटी से भी जोडती है.... हमारी पहचान भी बनाती है.