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Wednesday 6 July 2016

सठे साठ्यम् समाचारेत् ....



सठे साठ्यम् समाचारेत् ....

        हमारी गली में कई कुत्ते हैं लेकिन एक कुत्ता हर बाइक व साइकिल सवार के पीछे दौड़ता है कुछ को काट भी चुका है ! मगर एक महिला उस कुत्ते पर पलटवार करने वाले को गालियाँ देने से बाज नहीं आती !!
        लोग उस महिला से कहते हैं कि अगर इस कुत्ते से इतना ही मोह है तो इसे बाँध कर रखो तो इस पर वो उस कुत्ते के स्वामित्व से मुकर जाती है ! बड़ी विकट स्थिति है !!
        खैर ! रोज की तरह मैं बाइक पर निकला मगर उस दिन तथाकथित मालकिन और कुत्ते दोनों को सबक सिखाने मूड में था ! ज्यों ही कुत्ता मेरे पीछे दौड़ा ! मैंने कसकर डिस्क ब्रेक खींच दिए ! अचानक बाइक रुक जाने से मेरे पीछे बदहवास सा दौड़ता कुत्ता अवाक सा बाइक के पास ही ठहर गया ! बाइक पर बैठे -बैठे " सठे साठ्यम् समाचारेत् " की रीत पर मैंने उसको मौका दिए बिना तुरंत उसकी थूंथन पर पैर से प्रहार कर दिया ! अचानक प्रहार से विचलित कुत्ता संभलने में असमर्थ था ! वापस भागा ! तथाकथित मालकिन मेरे तेवर देखकर स्तब्ध थी !! कुछ न बोल सकी !!
      अब वो कुत्ता मेरे पीछे काटने को नहीं दौड़ता है !
      विवेकानन्द जी ने भी कहा है, " भागो मत ! पलटो और मुकाबला करो ! "
सोचता हूँ, मंच कोई भी हो, मिथ्या, तथ्यहीन, अनर्गल प्रलाप पर मौन साध लेना और सही को सही कह सकने की हिम्मत न जुटा पाना भी विपरीत आचरण को उत्साहित करने जैसा ही कृत्य है।

बुरा जो देखन मैं चला,..



बस यूँ ही बैठे ठाले-ठाले ...

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोये।
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोये॥
 
          सोच रहा था !! हम यहाँ फेसबुक पर दिन-रात ज्ञान बांटते हैं.. सरकार किसी की भी हो लेकिन व्यवस्था में, समाज में.. ढेरों कमियाँ खोजकर सरकार को कोसने व समस्याओं पर बढ़-चढ़कर बहस करने में भी हमें महारत हासिल है ! तारीफ़ का हुनर भी हम सभी में खूब है !!
         हम सभी की आदर्शवादी पोस्ट्स से महसूस होता है जैसे हम सभी फेसबुक यूजर भगवान् स्वरुप हैं .. फिर भी अव्यवस्था !!
       खैर .. लोकतंत्र है सब चलेगा ! लेकिन फिर भी सोचता हूँ कि हम मानव हैं .. भगवान् नहीं !! कमियाँ हम सभी में हैं बेशक उनका स्वरुप अलग-अलग हो सकता है.
       जिस तरह हम दूसरे में कमी खोजते हैं या दोषारोपण करते हैं क्या हम उसी तर्ज पर अपनी व्यक्तिगत कमियों, अवगुणों या दोषों को भी सहजता से स्वीकार कर उन पर चर्चा कर सकने का साहस और आत्म सुधार की व्यक्तिगत मन: स्थिति रखते है !!
या यूँ ही "फेसबुक बाबा" के रूप में कॉपी-पेस्ट और वाल पेपर पोस्ट करके निठल्ला ज्ञान ही बांचते रहेंगे ....
       सोचता हूँ सवा अरब की आबादी के देश में " शिकायती फोंपू " बनने से बेहतर है कि उपलब्ध संसाधनों से व्यक्तिगत स्तर पर स्वयं के चिड़ि प्रयासों द्वारा आदर्श प्रस्तुत किए जाएं. इस तरह समाज में सकारात्मक सोच अवश्य विकसित हो सकती है।
                              हम सुधरेंगे... जग सुधरेगा .. हम बदलेंगे.. जग बदलेगा ..