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Saturday 2 April 2016

स्वस्थ व समृद्ध विरासत : संक्रमण काल



स्वस्थ व समृद्ध विरासत : संक्रमण काल

          पारंपरिक संगीत व नृत्य किसी भी संस्कृति के दर्शन हेतु स्वच्छ व स्पष्ट दर्पण होता है, आधुनिकता की ओट में व्यावसायिक मनोवृत्ति के तुष्टिकरण हेतु लोक संगीत में हिंदी फिल्मों की फूहड़ता का मिश्रण, उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति पर कुठाराघात है जो सामाजिक सहिष्णुता व समरसता में धीमे जहर की तरह नकारात्मक योगदान दे रहा है, इस कारण यह गंभीर चर्चा व चिंता का विषय बन गया है, संक्रमण काल में ही, समय रहते, समाज के प्रबुद्ध व नेतृत्व करने वाले वर्ग द्वारा समृद्ध विरासत को बचाए के लिए, फूहड़ता को तहेदिल से हतोत्साहित किया जाना अति आवश्यक है. इससे समाज में सकारात्मक सन्देश पहुंचेगा जिससे कलाकार,सकारात्मक सृजन की ओर उन्मुख होंगे ..
        ऐसा नही कि फूहड़ता भरा संगीत और नृत्य, पारंपरिक संगीत और नृत्य पर पूर्णतया हावी हो चुका है, आज भी शादी, पार्टी आदि में आधुनिक बैंड बाजों के मुकाबले,पारंपरिक वाद्ययंत्रों के स्वरों (ढोल-दमाऊ और मूसकबाजा) पर स्वाभाविक रूप से थिरकने वालों की संख्या अधिक ही देखने को मिलती है. आखिर संख्या अधिक क्यों न हो !! जन्म-जन्मान्तर से जो संगीत रग-रग में रचा-बसा है उस पर मन स्वाभाविक रूप से मयूर नाच उठता है और इस स्वाभाविक थिरकन से तन और मन, दोनों, हल्का महसूस करते है.


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