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Saturday 26 September 2015

दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन..


           शादी के व्यस्त माहौल के बीच कुछ शांत और एकांत के पल बहुत सुकून देते हैं.
सुनसान और अँधेरी राहों पर गुलज़ार साहब का लिखा गीत ताज़ा हो आता है ..इस गीत से जुड़ी रोचक जानकारी भी देना चाहूँगा ••••
                                    
                                  " दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन.
                                           बैठे रहें तस्सवुर-ए-जानां किए हुए..."
          जब भी हम ये गीत सुनते हैं , तो कह उठते हैं कि वाह! गुलज़ार साहब ने क्या गीत लिखा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऊपर के ये दो लाईन गुलज़ार साहब ने नहीं लिखी हैं, मिर्जा ग़ालिब साहब ने लिखी हैं। गुलज़ार साहब ने सिर्फ इसका अंतरा लिखा है। ये अलग बात है कि अंतरा भी उतना ही लाज़वाब है जितना कि मुखड़ा।
 

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