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Monday 27 August 2018

आश्चर्यजनक पत्र..


आश्चर्यजनक पत्र..

      अकबर-बीरबल का एक रोचक किस्सा याद आया !! इसे केवल किस्से तक सीमित न रखियेगा. प्रस्तुतीकरण के मंतव्य पर विवेकानुसार अभिमत दीजिएगा।
सुखदेव सिंह ईरान यात्रा से लौटे तो दरबार में बादशाह अकबर ने उनकी यात्रा के बारे में पूछा. सुखदेव सिंह बोले, हुज़ूर ! आपके लिए शाहे ईरान ने सलाम कहा है वे बीरबल को भी याद कर रहे थे साथ ही बीरबल को शाही अतिथि के रूप में ईरान आने का न्यौता भी दिया है.. 
ईरान के शाह द्वारा बीरबल को दिए गए महत्व पर अकबर को मन ही मन ईर्ष्या हुई और बीरबल से मुखातिब होते हुए पूछा तुम भी शाह ईरान से मिले हो तुमको वो कैसे लगे ? हुजूर ! मुझे भी वो अच्छे लगे वे बहुत समझदार बादशाह हैं, बीरबल ने जवाब दिया. बीरबल का जवाब सुनकर अकबर को शंका हुई और फिर से सवाल दागा .. क्या तुम उनको मुझसे बेहतर शहंशाह मानते हो. बीरबल बोले. हुजुर ! मैंने तुलना नहीं की ! मैंने उनको समझदार शहंशाह कहा.
अब अकबर ने सभी दरबारियों से तुलना करने को कहा. सभी दरबारियों ने बादशाह अकबर की तारीफ में लम्बी-लम्बी बाते कहीं जब बीरबल से तुलना करने को कहा गया तो बीरबल बोला.. हुजुर मैं यह नहीं कह सकता कि इससे बेहतर सल्तनत नहीं हो सकती या आपसे बेहतर बादशाह हो ही नहीं सकता ! यह सुनकर बादशाह चौंके ! दरबार में सन्नाटा छा गया.. अन्य दरबारी बीरबल को कई तरह उलाहना देने लगे.
बादशाह ने स्वयं को सँभालते हुए कहा .. तो ये बताओ हमसे बेहतर बादशाह कौन है ? जवाब में बीरबल बोला, हुजुर ! फिर से दोहराता हूँ... आप बेशक अच्छे शहंशाह हैं लेकिन सबसे बेहतर नहीं ! हर किसी इंसान की तरह आपमें भी खामियां हैं..भगवान् ने इंसान को कुछ ऐसा ही बनाया है.. जिससे कि वो स्वयं में निरंतर सुधार करता रहे.
यह सुनकर अकबर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और इसे अपनी शान में गुस्ताखी मानकर, बीरबल को दरबार से निकल जाने को कहा .. लेकिन बाद में एक विद्वान, काबिल और हाज़िर जवाब बीरबल को इस तरह दरबार से निकालने पर अकबर को स्वयं भी अच्छा न लगा. रात भर नींद नहीं आई . सुबह, बीरबल को दरबार में आने की सूचना भिजवाई लेकिन संदेशवाहक ने बताया कि बीरबल के नौकर ने बताया है कि बीरबल बहुत लम्बी यात्रा पर चले गए हैं उनके घर पर ताला लगा है. अब बादशाह बहुत परेशान हो गए उन्होंने बीरबल को खोजने के लिए अपने दूत हर दिशा में भेजे लेकिन बीरबल का पता न लगा.
अकबर ने ईरान के शाह को पैगाम भेजा जिसमें लिखा था “ अज़ीज़ दोस्त ! हमने, हमारे तालाबों का रिश्ता तय किया है. आपकी सल्तनत की नदियों को हम शादी का न्यौता देते हैं. इस पैगाम का अर्थ न शहंशाह समझ सका न दरबारी ! शाह ईरान ने बीरबल से ख़त का जवाब लिखने को कहा.. बीरबल ने जवाब में लिखा. “ हमारी नदियाँ आपके तालाबों की शादी में आने से बहुत खुश होंगी लेकिन अपने शहर के कुओं से कहिये कि वे शहर के दरवाज़े पर नदियों का स्वागत करें.".
पैगाम का जवाब पढ़कर बादशाह समझ गए कि इस तरह का जवाब कौन दे सकता है और.. स्वयं बीरबल को लेने ईरान चल दिए ..


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