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Sunday 15 May 2016

“पाला-बदल“ नेता ; राजनैतिक कोढ़






“पाला-बदल“ नेता ; राजनैतिक कोढ़


       कितना अच्छा हो यदि ऐन चुनावों के वक्त मौकापरस्त और मूल्यरहित राजनीति करने वाले "पाला-बदल" नेताओं को बड़े राष्ट्रीय दल पाला बदलने का मौका न देकर, बहिष्कार कर उनको आईना दिखाते !! जिससे यह प्रवृत्ति हतोत्साहित होती . आश्चर्य होता है !! जो नेता, चुनाव से कुछ दिन पूर्व तक पानी पी-पी कर जिस दल का विरोध करते दीखते हैं, सम्बंधित दल के चुनावों में अच्छी स्थिति में होने पर, ऐन चुनाव के वक्त, उसी दल की गोदी में बैठकर उसका महिमा गान प्रारंभ कर देते हैं !! क्या इतनी जल्दी विचार परिवर्तन हो सकते हैं ?? मेरे विचार से ये विचार परिवर्तन न होकर मौकापरस्ती या हित साधना ही कहा जाएगा. और इसी प्रकार के नेता अनैतिक कार्यों को बढ़ावा देते हैं !! भला ऐसे लोगों को अपने दल में शामिल कर ये राष्ट्रीय दल किस प्रकार, राजनीतिक सुचिता बनाये रखने के दावे कर सकते हैं !! समझ नही आता !!
      अगर ऐसे नेताओं की पृष्ठभूमि का अध्ययन किया जाय तो उनकी निष्ठा कभी किसी एक दल के साथ नही रही !! उनकी राजनीति, आदर्शों व राजनैतिक मूल्यों की न होकर, सदैव मौकापरस्ती की धुरी के इर्द-गिर्द ही घूमती है ..और मौकापरस्त कभी किसी का नही हो सकता ! आश्चर्य तब होता है जब राष्ट्रीय स्तर के दल ऐसे लोगों का अपने दलों में पूरे “बैंड-बाजे” के साथ स्वागत करते दीखते हैं !!
राजनैतिक सुचिता हर अनैतिक कार्य को रोकने का साधन है और नैतिकता परिपूर्ण लक्ष्य ( साध्य ) को प्राप्त करने के लिए साधन भी नैतिकता पर आधारित ही होने चाहिए ..
      दरअसल सम्यक लाभ के लोभ में राजनैतिक दल भी आदर्शों और मूल्यों को ताक पर रख देते हैं लेकिन कुछ सम्यक लाभ लम्बे समय में स्थापित आदर्शों पर कुठाराघात कर अवनति की ओर ही ले जाते हैं .. हालाँकि सभी दल “ पाला-बदल “ नेताओं के कृत्यों से त्रस्त हैं लेकिन इस दिशा में पहल करना ख़ुदकुशी करना ही समझते हैं !!
      दरअसल अनैतिक कार्यों के लिए सभी दल हाय-हल्ला तो करते दीखते हैं लेकिन अपने कुर्ते में कितने दाग और लगा दिए हैं.. इस बात को नजरअंदाज ही करते हैं !!
      मतदाता किसी पार्टी विशेष को उसके सिधान्तों और कार्यों के आधार पर वोट देते हैं लेकिन ये नकारे गए “ पाला-बदल “ नेता ऐन चुनाव के वक्त उसी दल में शामिल होकर मतदाता के साथ छल ही करते हैं !!
      क्या, ठीक चुनावों के वक़्त मौकापरस्त, मूल्यरहित और स्वार्थी नेताओं की इस प्रवृत्ति पर कभी अंकुश लग सकेगा ?? क्या मतदाता राजनैतिक दलों की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने हेतु ऐसे “ पाला-बदल “ नेताओं को स्वयं से ही ख़ारिज कर सकेंगे ?? क्या आम जनता को इस राजनैतिक कोढ़ से कभी मुक्ति मिल सकेगी ??

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