स्टालिन व मुर्गा
कहा जाता है कि सोवियत संघ का तानाशाह स्टालिन एक दिन अपनी पार्टी मीटिंग में एक जिन्दा मुर्गा लेके पहुंचा। भरी मीटिंग में उसने उस मुर्गे के पंख को खींच खींच कर फेकने लगा, मुर्गा तड़पने लगा।वहाँ उपस्थित सभी लोग देखते रहें, स्टालिन ने बिना दया खाये मुर्गे का सारा पंख नोच डाला, फिर जमीन पर फेक दिया।
अब उसने अपनी जेब से थोड़े दाने निकाल मुर्गे के आगे डाल दिया।
मुर्गा दाने खाने लगा और स्टालिन के पैर के पास आकर बैठ गया। स्टालिन ने और दाने डालें तो मुर्गा वह भी खा गया और स्टालिन के पीछे पीछे घूमने लगा।
स्टालिन ने अपनी पार्टी के नेताओ से कहा, जनता इस मुर्गे की तरह होती है।आपको उसे बेसहारा और बेबस करना होगा, आपको उसपर अत्याचार करना होगा, आपको उनकी जरूरतों के लिए तड़पाना होगा। अगर आप ऐसा करोगे तो जब थोड़ा टुकड़े फेकोगे तो वह जीवन भर आपके गुलाम रहेंगें और आपको अपना हीरो मानेंगें, वह यह भुल जाएंगे की उनकी बदतर हालत करने वाले आप ही थे।
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