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Thursday, 7 April 2016

ठाले ठाले बस यूँ ही ..




ठाले ठाले बस यूँ ही ..

     हर व्यक्ति और राजनीतिक दल नैतिक मूल्यों, आदर्शों व शुचिता की बात करता है लेकिन ... ढ़ाक के वही तीन पात !!
      कल्पना ही सही !! लेकिन यदि एक ऐसे राष्ट्रीय राजनीतिक दल का गठन हो जाए जिसमें सार्वजनिक रूप से कबूलनामे द्वारा स्वयं को साधु घोषित कर चुके, दल बदलू, विश्वासघाती, थनपति, अवसरवादी, भ्रष्टाचारी, बाहुबली, माफिया, तस्कर, नक्सली, धार्मिक उन्मादी, बलात्कारी, रसिक मिजाज, हत्यारे, आतंकी, विदेशों में धन रखने वाले, जमाखोर, कालाबाजारी, सुपारीबाज, बैंकों का कर्ज डकारने वाले उद्योगपति .. (जो " विशिष्ट क्षेत्र" छूट गए हैं उनको आप स्वयं जोड़ सकते हैं) .. जैसे लोग ही स्वयं द्वारा पूर्व में किये गए " कारनामों " की "विशिष्टता" के आधार पर चुनाव प्रत्याशी बनने के योग्य समझे जाएं !! तो कुछ अलग तरह के राजनीतिक व सामाजिक समीकरण बन सकते हैं !!
      फौरी तौर पर है तो बेसिर पैर की बात ! चलिए ! फिर भी कभी -कभी निठल्ला चिंतन ही सही ! क्योंकि "लोकतंत्र" में कुछ भी संभव है ! यदि राजनीतिक दलों में पहले से ही सम्मिलित या सम्बंधित इस तरह के " हुनरमंद " लोगों को उचित "सम्मान" न मिला तो भविष्य में सरकारों को गिराकर निश्चित ही ये सभी लोग एक मंच पर आकर एक अलग राजनीतिक दल बना सकते हैं !! आखिर कब तक ये लोग खुद नकाब में रहकर, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे दलों की सरकारें बनाने में सहयोग करते रहेंगे !! अगर विभिन्न दलों से जुड़े ऐसे लोग एक हो गए तो इस दल को पूर्ण बहुमत मिलना भी तय है !!
        इस लिए हमें पहले से ही "स्वागत-अस्वागत" के लिए तैयार रहना चाहिए !! अगर ऐसा संभव हुआ !! तो मुझे मुखौटा लगाये बड़ी बड़ी राजनीतिक दुकाने बंद होना तय लगता है !!


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