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Tuesday, 12 April 2016

गाहे बगाहे !



गाहे बगाहे ! बस यूँ ही ! तस्वीर कौतुक

              कल सिनेमा देखने का मन हुआ .. शो प्रारंभ होने में कुछ वक्त था.. सोचा ! बैंच पर बैठे इन महोदय से मुखातिब हो लिया जाए !
             वैसे तो लंबू भाई शॅापिंग मॅाल के अन्दर की दुनिया के रंग बिरंगे नजारों को आराम से बैंच पर बैठकर देखते हुए मौज में नज़र आते हैं मगर ..
रूबरू होने पर हकीकत पता लगी !
             जनाब ने छूटते ही .. किसी खंडहर की दास्ताँ सुनाने की फरमाइश कर डाली !! बातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो लंबू भाई ने अपना दर्द-ए-दिल भी बयाँ कर दिया .. बताया ... उजालों की चकाचौंध दुनिया के बाद रात के सन्नाटों में खुद को बहुत अकेला पाते हैं ! रात काटे से नहीं कटती !! ख्यालों में यूँ ही तन्हा बैठे-बैठे गुमसुम गुजर जाती है !
            सोचता हूँ .. व्यक्ति के चेहरे पर प्रदर्शित सदाबहार मुस्कराहट जरूरी नहीं कि सदैव उसकी प्रसन्नता का ही द्योतक हो .. सदाबहार मुस्कराहट, व्यक्ति की विपरीत परिस्थितियों में जीवटता बनाये रखने के गुण को भी प्रदर्शित करती है .. 


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