राग “ खिसियाना “ !
शीतनिद्रा में पड़े मेंढकों को स्वप्न में वर्षा होने का आभास हुआ तो क्या बूढ़े ! क्या जवान !! अधिकतर मेंढक अपनी सिकुड़ी खाल को "तरेरते” हुए, सर्दी के मौसम में सुसुप्तावस्था के नशे में टर्र-टर्र का करते हुए जमीन से बाहर निकल आये! लेकिन चपलता अभाव में लतियाये गए और बिन वर्षा, प्रतिकूल मौसम के कारण गिरते-पड़ते, बीमार होकर पुन: भूमिगत हो जाने को मजबूर हुए !!
खैर ! कुछ लोगों की भी समय प्रतिकूल टर्राने की आदत होती है !! अब मुद्दे पर आता हूँ ..परसों की ही बात है मेरे अज़ीज़ मित्र आनंद साहब ने अपनी ईमानदारी की गाढ़ी कमाई से सुन्दर मकान बनाया और गृह-प्रवेश के अवसर पर मुझे सपरिवार आने का निमंत्रण दिया, मेरे पड़ोस में रहने वाले खन्ना साहब भी उभय परिचित थे, उनको भी निमंत्रण मिला, इसलिए हम साथ ही आनंद साहब के यहाँ नियत समय पर उपहार लेकर बधाइयां देने पहुँच गए, आनंद साहब अपने हंसमुख व मिलनसार अंदाज में गर्मजोशी से हमारा स्वागत करने ..जैसे पहले से ही तैयार थे !!
चाय पान के साथ खुशनुमा माहौल में बातों का दौर शुरू हुआ ..सभी आनंद साहब के सुन्दर घर की तारीफ करते नही अघा रहे थे और आनंद साहब सरल व सौम्य अंदाज में सभी का शुक्रिया अदा कर रहे थे ..
लेकिन मेरे साथ पहुंचे खन्ना साहब ने यह कह कर कि..”. आनंद साहब, आपने घर तो बहुत अच्छा बनाया लेकिन इस कालोनी में गुप्ता जी जैसा सुन्दर घर किसी का नही “..कहकर ..उल्लासपूर्ण माहौल में जैसे छींक मारकर सबको हैरत में डाल दिया.माहौल में जैसे सन्नाटा पसर गया !!.सब एक दूसरे के चेहरे के भावों का मूल्यांकन करते एकाएक चुप हो गए !!..
खैर, बेहतरीन व्यक्तित्व के धनी आनंद साहब ने माहौल को बदलने के प्रयास में साथियों का हालचाल पूछने लगे !! और कक्ष से बाहर काम का बहाना कर चले गए . उनके मनोभावों से ऐसा लगता था जैसे वे अपने आवेशित भावों को नियंत्रण में रखने के अनियंत्रित प्रयास में अंतर्द्वंद में उलझ रहे हैं !!
आनंद साहब की उपस्थिति के कारण ही सब संकोच कर रहे थे ... उनके जाते ही खन्ना साहब की जो छिछालीदर हुई, उसपर उनको वहां बैठते नही बन रहा था .. किसी तरह वहां से सपरिवार, कहीं और निमंत्रण का बहाना बनाकर बिना भोजन किये जाने को विवश हुए !!
कमोवेश, माहौल के विपरीत स्वरालाप (बेशक घूंघट की आड़ में ही सही) द्वारा अपनी खीज निकालना !! ,आजकल “ विद्वता” का प्रतीक बन गया है !! और जब तथाकथित विद्वान यह खीज खुलमखुल्ला प्रदर्शित करते दिखाई देते हैं तो छुटभैय्या साथियों के भी पौ बारह हो आते हैं, बेशक उन्हें खन्ना साहब व सपरिवार तरह शर्मिंदगी झेलनी पड़े या बेमौसम बाहर निकल आये मेंढकों की तरह लतियाये जाने पर भूमिगत होने को मजबूर होना पड़े !!! ^^ विजय