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Monday, 27 August 2018

आश्चर्यजनक पत्र..


आश्चर्यजनक पत्र..

      अकबर-बीरबल का एक रोचक किस्सा याद आया !! इसे केवल किस्से तक सीमित न रखियेगा. प्रस्तुतीकरण के मंतव्य पर विवेकानुसार अभिमत दीजिएगा।
सुखदेव सिंह ईरान यात्रा से लौटे तो दरबार में बादशाह अकबर ने उनकी यात्रा के बारे में पूछा. सुखदेव सिंह बोले, हुज़ूर ! आपके लिए शाहे ईरान ने सलाम कहा है वे बीरबल को भी याद कर रहे थे साथ ही बीरबल को शाही अतिथि के रूप में ईरान आने का न्यौता भी दिया है.. 
ईरान के शाह द्वारा बीरबल को दिए गए महत्व पर अकबर को मन ही मन ईर्ष्या हुई और बीरबल से मुखातिब होते हुए पूछा तुम भी शाह ईरान से मिले हो तुमको वो कैसे लगे ? हुजूर ! मुझे भी वो अच्छे लगे वे बहुत समझदार बादशाह हैं, बीरबल ने जवाब दिया. बीरबल का जवाब सुनकर अकबर को शंका हुई और फिर से सवाल दागा .. क्या तुम उनको मुझसे बेहतर शहंशाह मानते हो. बीरबल बोले. हुजुर ! मैंने तुलना नहीं की ! मैंने उनको समझदार शहंशाह कहा.
अब अकबर ने सभी दरबारियों से तुलना करने को कहा. सभी दरबारियों ने बादशाह अकबर की तारीफ में लम्बी-लम्बी बाते कहीं जब बीरबल से तुलना करने को कहा गया तो बीरबल बोला.. हुजुर मैं यह नहीं कह सकता कि इससे बेहतर सल्तनत नहीं हो सकती या आपसे बेहतर बादशाह हो ही नहीं सकता ! यह सुनकर बादशाह चौंके ! दरबार में सन्नाटा छा गया.. अन्य दरबारी बीरबल को कई तरह उलाहना देने लगे.
बादशाह ने स्वयं को सँभालते हुए कहा .. तो ये बताओ हमसे बेहतर बादशाह कौन है ? जवाब में बीरबल बोला, हुजुर ! फिर से दोहराता हूँ... आप बेशक अच्छे शहंशाह हैं लेकिन सबसे बेहतर नहीं ! हर किसी इंसान की तरह आपमें भी खामियां हैं..भगवान् ने इंसान को कुछ ऐसा ही बनाया है.. जिससे कि वो स्वयं में निरंतर सुधार करता रहे.
यह सुनकर अकबर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और इसे अपनी शान में गुस्ताखी मानकर, बीरबल को दरबार से निकल जाने को कहा .. लेकिन बाद में एक विद्वान, काबिल और हाज़िर जवाब बीरबल को इस तरह दरबार से निकालने पर अकबर को स्वयं भी अच्छा न लगा. रात भर नींद नहीं आई . सुबह, बीरबल को दरबार में आने की सूचना भिजवाई लेकिन संदेशवाहक ने बताया कि बीरबल के नौकर ने बताया है कि बीरबल बहुत लम्बी यात्रा पर चले गए हैं उनके घर पर ताला लगा है. अब बादशाह बहुत परेशान हो गए उन्होंने बीरबल को खोजने के लिए अपने दूत हर दिशा में भेजे लेकिन बीरबल का पता न लगा.
अकबर ने ईरान के शाह को पैगाम भेजा जिसमें लिखा था “ अज़ीज़ दोस्त ! हमने, हमारे तालाबों का रिश्ता तय किया है. आपकी सल्तनत की नदियों को हम शादी का न्यौता देते हैं. इस पैगाम का अर्थ न शहंशाह समझ सका न दरबारी ! शाह ईरान ने बीरबल से ख़त का जवाब लिखने को कहा.. बीरबल ने जवाब में लिखा. “ हमारी नदियाँ आपके तालाबों की शादी में आने से बहुत खुश होंगी लेकिन अपने शहर के कुओं से कहिये कि वे शहर के दरवाज़े पर नदियों का स्वागत करें.".
पैगाम का जवाब पढ़कर बादशाह समझ गए कि इस तरह का जवाब कौन दे सकता है और.. स्वयं बीरबल को लेने ईरान चल दिए ..


प्रोटोकॉल


एकदा......
        आजकल बड़े-बुजुर्ग घरों में कम ही नज़र आते हैं.... महानगरों में तो किसी परिवार के साथ बुजुर्ग को देख लेना एक अलग और सुखद अहसास से कम नहीं !! गौरतलब है कि 2001 की जनगणना में बुजुर्गों की संख्या 7.66 करोड़ थी और 2011 में देश में बुजुर्गों की जनसँख्या बढ़कर 10.38 करोड़ दर्ज की गई है ! 
आज भी ग्रामीण क्षेत्र संस्कृति और संस्कारों से समृद्ध है. शायद ! इसका एक कारण ग्रामीण क्षेत्रो का बुजुर्ग आबादी समृद्ध होना भी है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में देश की कुल बुजुर्ग आबादी का 71 प्रतिशत निवास करता है.
हालांकि उम्मीद करता हूँ कुछ प्रगतिशील विचारक एकल परिवार के पक्ष में " सार्थक " तर्क भी दे सकते हैं !!
रही सही कसर शादी-पार्टियों के " प्रोटोकॉल " कर रहे हैं .... व्यावसायिकता चुपचाप संस्कृति की जड़ पर मट्ठा डाल रही हैं और हम सूट-बूट पहनकर पार्टी में ...अपना " स्टेटस मेंटेन " कर आनंद ले रहे हैं !!
एक जगह भोजन पर जाना हुआ... तो वहां लगी इस " तख्ती " ने बरबस ध्यान आकर्षित किया... आवश्यक नहीं की आप मेरी पुरातन पंथी विचार धारा से सहमत हों...



स्टालिन व मुर्गा


स्टालिन व मुर्गा 

         कहा जाता है कि सोवियत संघ का तानाशाह स्टालिन एक दिन अपनी पार्टी मीटिंग में एक जिन्दा मुर्गा लेके पहुंचा। भरी मीटिंग में उसने उस मुर्गे के पंख को खींच खींच कर फेकने लगा, मुर्गा तड़पने लगा।
वहाँ उपस्थित सभी लोग देखते रहें, स्टालिन ने बिना दया खाये मुर्गे का सारा पंख नोच डाला, फिर जमीन पर फेक दिया।
अब उसने अपनी जेब से थोड़े दाने निकाल मुर्गे के आगे डाल दिया।
मुर्गा दाने खाने लगा और स्टालिन के पैर के पास आकर बैठ गया। स्टालिन ने और दाने डालें तो मुर्गा वह भी खा गया और स्टालिन के पीछे पीछे घूमने लगा।
स्टालिन ने अपनी पार्टी के नेताओ से कहा, जनता इस मुर्गे की तरह होती है।आपको उसे बेसहारा और बेबस करना होगा, आपको उसपर अत्याचार करना होगा, आपको उनकी जरूरतों के लिए तड़पाना होगा। अगर आप ऐसा करोगे तो जब थोड़ा टुकड़े फेकोगे तो वह जीवन भर आपके गुलाम रहेंगें और आपको अपना हीरो मानेंगें, वह यह भुल जाएंगे की उनकी बदतर हालत करने वाले आप ही थे।



लम्हों ने खता की थी..


बैठे ठाले .... ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर 
इलैक्ट्रोनिक मीडिया जब से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यवस्था के गुण गान करने वाला और व्यवस्था के अनुरूप नकारात्मक ख़बरों का भोंपू बन गया तब से मैंने टी वी देखना छोड़ दिया. इनका काम है येन केन प्रकारेण मुनाफा कमाना ! बेशक उनके द्वारा प्रसारित व्यवस्था को पोषित करती ख़बरें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित क्यों न करती हों ! तो भला हम क्यों स्वयं में निगेटिविटी को प्रश्रय दें ! 
आलम ये है कि गप-शप की चौपाल, सोशल मीडिया भी भावुक नागरिकों के माध्यम से इन भोंपुओं की गिरफ्त में आने लगा है. यहाँ भी हर राजनीतिक दल का एक अलग किला नज़र आता है ! जिनमें उनके सैनिकों के साथ वस्तु स्थिति से अनभिज्ञ आम नागरिक भी खड़ा नज़र आता है ! अलग-अलग राजनीतिक दलों के आई टी सेल उन किलों में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर सामग्री के रूप में असलाह बारूद मुहैय्या करवा रहे हैं. आपसदारी खत्म होती जान पड़ती है ! प्रायः हर कोई एक भोंपू लिए और अपने किले की सुरक्षा में बंदूक ताने खड़ा है !
हर काल में किलों से बाहर सूफी विचारक रहे वे व्यवस्था की आक्रामकता या चकाचौंध से प्रभावित हुए बिना तथ्यपूर्ण और तर्क संगत दृष्टिकोण से चौपालों में अपनी बात को बेखौप रखते थे. किलेबंदी की मन: स्थिति से हटकर हर कोई उनकी बात को सम्मान दिया जाता था और मनन भी किया जाता था.. इसी तरह के लोगों ने भटके हुए लोगों और समाज को नयी दिशा भी दी .. लेकिन अब देखता हूँ स्थिति उलट है ! अब ऐसे सूफियों को ही संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है ! भटके हुए समाज को दिशा देने वाले लोगों पर ही प्रहार किया जा रहा है . उनका मखौल उड़ाया जा रहा है ! अक्सर कहा जाता है.. “ बी पॉजिटिव “ लेकिन जब केवल नकारात्मक ही परोसा जाय तो साधनों के अभाव से जूझता आम नागरिक कब तक .. बी पॉजिटिव “ पर टिका रह सकता है !.
पहले और अब भी अपने स्वार्थों के चलते विदेशी शक्तियां स्व पोषित दलालों से भड़काऊ बयानबाजी या कार्य करवाकर देश में क्षेत्रीय, धार्मिक, जातीय व भाषाई अफरा तफरी और असुरक्षा का वातावरण बनाने की कोशिश करती थी .. लेकिन मुझे कहने की जरुरत नहीं !! आज उनका काम बहुत आसान हो गया है आज वही काम ............... !! 
आखिर हम किस तरफ जा रहे हैं ? क्या दल गत किलेबंदी के चलते हम उसी युग में तो नहीं पहुँच रहे हैं.. सेना में भी सैनिकों के अलग-अलग चूल्हे हुआ करते थे और विदेशी आक्रान्ताओं ने उसका फायदा उठाया ! येन केन प्रकारेण अपने स्वदेशी राजाओं को हारने के लिए विदेशी बहशियों से समझौते किये ! इन मौका परस्त राजाओं और आम जनता का हश्र क्या हुआ ? इससे हम अनभिज्ञ नहीं !!
राजनीतिक आस्था, व्यक्ति आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप बदलती रहती हैं ... यदि ऐसा न होता तो एक ही दल की सरकार बनी रहती ! सोचता हूँ धरातल पर हमें एक ही बना रहना चाहिए .. धार्मिक अन्धता के चलते धर्म क्षेत्र में आशाराम, राम रहीम जैसे व्यक्ति पूजित होने लगते हैं.. राजनीति में भी कमोबेश इसी आचरण के लोग आने लगे हैं जो भावना प्रधान भारतीय समाज का भावनात्मक दोहन करने का हुनर रखते हैं.. उनसे हमें सावधान रहने की आवश्यकता है ! राजनीतिक मतभेद और मतैक्य देश काल माहौल से प्रभावित अवश्य हो सकते हैं लेकिन हर परिस्थिति में विवेक का रोशनदान खुला रखना भी जरूरी है. जिससे भविष्य में अपनी मानसिक अन्धता के लिए पछतावा न करना पड़े .. 
ऐसा न हो कि आने वाली पीढ़ियां भोंपू वाद के समर्थक होने के लिए हमें कोसें !
हम सभी को परम् पिता ने ज्ञानेन्द्रियाँ दी हैं ! भला हम किसी का भोंपू क्यों बनें ! क्यों हम किसी के पिछलग्गू बनें !! सोचता हूं भोंपू बनने से बेहतर, स्व विवेक से सार्थक चर्चा का हिस्सा बनना है।
भावना प्रधान होना मानव सुलभ गुण है लेकिन भावनाओं में बहकर कहीं फिर ऐसा न हो... " लम्हों ने खता की थी... सदियों ने सजा पायी !

राजशाही और लोकतंत्र



         ये तो है राजशाही के दौर में प्रयोग किये जाने वाले भालों का संग्रह मगर ये सब देखकर सोचता हूँ कि...
राजशाही में चारणों द्वारा महिमामंडन करवाकर राजाओं को आम जन के मध्य देव रूप में स्थापित किया जाता था !
लोकतंत्र में मीडिया व चाटुकारों द्वारा मिथ्या यशोगान करके नेताओं को आम जन के मध्य देव रूप में स्थापित करने का प्रयास किया जाता है !!
इस तरह राजा व नेता समतुल्य ही हुए.
तो फिर राजशाही और लोकतंत्र में अंतर ?


Saturday, 15 October 2016

सन १८०३ से जयाड़ा वंश वृक्ष


सन १८०३ से जयाड़ा वंश का विवरण निम्न प्रकार से है:-
श्री शोबन सिंह जयाड़ा जी के तीन पुत्र थे.
१.कीडू सिंह
२.शीशु सिंह
३.मंगल सिंह
कीडू सिंह- १.भूप सिंह २. केशरा सिंह
शीशु सिंह
पहली पत्नी-१. लालू सिंह
दूसरी पत्नी-१. जूणा सिंह
मंगल सिंह
पहली पत्नी-१. बन्नू सिंह
दूसरी पत्नी-१. केदारू सिंह
कीडू सिंह के वंशज
१.भूप सिंह २. केशरा सिंह
भूप सिंह
पहली पत्नी-१. हौंसू सिंह २. बन्या सिंह
दूसरी पत्नी-१. बाला सिंह २. गौळ सिंह
केशरा सिंह
१. लूथी सिंह २. जुपल सिंह ३. ग्याड़ू सिंह
हौंसू सिंह- १. माधो सिंह २. जोगी सिंह
बन्या सिंह- १. कंठू सिंह २. नैन सिंह
बाला सिंह- १. लूद्र सिंह २. औगड़ सिंह
गौळ सिंह- १. जीता सिंह
लूथी सिंह- १. खेम सिंह २. बचन सिंह ३. धर्म सिंह ४. फ़ते सिंह
जुपल सिंह- १. शिव सिंह २. गैणु सिंह
ग्याड़ू सिंह- १. कंठी सिंह २. सब्बल सिंह
माधो सिंह
पहली पत्नी-१. श्याम सिंह
दूसरी पत्नी-१.चन्द्र सिंह २. सुन्दर सिंह ३. कुंदन सिंह ४ प्रेम सिंह
जोगी सिंह-१. गुलाब सिंह २. कुशाल सिंह ३. बादाम सिंह
कंठू सिंह- १. भूरा सिंह २. फ़ते सिंह
नैन सिंह-
पहली पत्नी-१.जगत सिंह
दूसरी पत्नी-१.चतर सिंह २. नेत्र सिंह ३. अतर सिंह ४. राजेंदर सिंह ५. बलवंत सिंह ६. सुभाष सिंह ७. ज्योति सिंह
लूद्र सिंह-१. बच्चू सिंह २. जवाहर सिंह
औगड़ सिंह- १. सत्ये सिंह २. इन्द्र सिंह ३. प्रताप सिंह
जीता सिंह- १. गुमान सिंह
खेम सिंह- १.हीरा सिंह २. बीरा सिंह ३. सुन्दर सिंह ४. मकान सिंह
बचन सिंह- १. तेज प्रताप सिंह २. प्रकाश सिंह
धर्म सिंह- १. नागेन्द्र सिंह २. प्रकाश सिंह
फ़ते सिंह- १. दयाल सिंह २. गोबिंद सिंह ३. मान सिंह
शिव सिंह- १. गुलाब सिंह २. शोबन सिंह
गैणु सिंह(कोई पुत्र नहीं)
कंठी सिंह- १. मोहन सिंह
सब्बल सिंह- १. सोहन सिंह २. चन्दन सिंह
श्याम सिंह-१. दीवान सिंह २. हिम्मत सिंह
चन्द्र सिंह
पहली पत्नी- १. उमेद सिंह
दूसरी पत्नी- १. रमेश सिंह २. दिनेश सिंह
सुन्दर सिंह- १. भगवान सिंह २. त्रिलोक सिंह ३. प्रवीण सिंह
कुंदन सिंह- १. जगमोहन सिंह २. बिजेंद्र सिंह
प्रेम सिंह-१. उत्तम सिंह २. सोहन सिंह
गुलाब सिंह-१. भीम सिंह
कुशाल सिंह-१.महावीर सिंह
बादाम सिंह-१. बलबीर सिंह २. रवि सिंह
भूरा सिंह- १. कुंवर सिंह २. कमल सिंह ३. बिक्रम सिंह
फते सिंह-
पहली पत्नी- १. जबर सिंह २. बिरेन्द्र सिंह ३. दर्मियान सिंह
दूसरी पत्नी- १. जोत सिंह २. गबर सिंह ३. ऊदे सिंह
जगत सिंह- १. यशपाल सिंह २. अरबिंद सिंह
चतर सिंह-१. राजपाल सिंह
नेत्र सिंह- १. रोजन सिंह २. मनोज सिंह
अतर सिंह-(सर्प के काटने से मृत्यु)
राजेंदर सिंह- नाम उपलब्ध नहीं
बलवंत सिंह- नाम उपलब्ध नहीं
सुभाष सिंह-नाम उपलब्ध नहीं
बच्चू सिंह-१. सुभाष सिंह
जवाहर सिंह-
पहली पत्नी- १.विनोद सिंह २. त्रिलोक सिंह ३. पान सिंह
दूसरी पत्नी- १. रोशन सिंह
सत्ये सिंह- १. भगवान सिंह २. गोबिंद सिंह
इन्द्र सिंह-१. सुरेंदर सिंह २. विजेंद्र सिंह
प्रताप सिंह-१. सुखदेव सिंह
गुमान सिंह-
पहली पत्नी- १.हुकम सिंह
दूसरी पत्नी- १. शोबन सिंह २. जोत सिंह ३. बिक्रम सिंह
हीरा सिंह-१. सिकंदर सिंह २.त्रिवेंद्र सिंह ३. दिनेश सिंह
बीरा सिंह- १. यशपाल सिंह २. सूरजपाल सिंह ३. गौतम सिंह
सुन्दर सिंह- १. दीपक सिंह २. दिर्घपाल सिंह
मकान सिंह -साधु बन गए
दयाल सिंह-१. अनुज सिंह २. मनोज सिंह
गोबिंद सिंह-१. अंकित सिंह
मान सिंह-१. मनीष सिंह
गुलाब सिंह-१. प्रताप सिंह २. गम्भीर सिंह ३ प्रकाश सिंह ४. चैन सिंह
शोभन सिंह- नाम उपलब्ध नहीं
शीशु सिंह के वंशज
पहली पत्नी- १. लालू सिंह
दूसरी पत्नी- १.जूणा सिंह
लालू सिंह-१. पिनघट सिंह
जूणा सिंह-१. मधु सिंह
पिनघट सिंह-१. छौड़्या सिंह २. अब्लू सिंह
मधु सिंह- १. कुशाल सिंह २. शेर सिंह
छौड़्या सिंह-
पहली पत्नी- १.बच्चू सिंह
दूसरी पत्नी- १.औतार सिंह २. रणबीर सिंह
अब्लू सिंह- १. लाटा सिंह
कुशाल सिंह-१. जय सिंह(रविन में बस गए) २. अतोल सिंह ३. मोर सिंह ४. नारायण सिंह
शेर सिंह- १. हरि सिंह ३. शूरवीर सिंह
बच्चू सिंह- १. मान सिंह
औतार सिंह- १. गोबिंद सिंह २. गजे सिंह
रणबीर सिंह- १. शोबत सिंह
लाटा सिंह- १. उमेद सिंह २. बीर सिंह ३. कल्याण सिंह ४. कुशाल सिंह
अतोल सिंह-१. संत सिंह २. सरदार सिंह
मोर सिंह-१. विजयपाल सिंह २. मान सिंह
नारायण सिंह-१. रतन सिंह २. मथन सिंह ३. लोकेन्द्र सिंह
हरि सिंह-१.हरदेव सिंह २. बलदेव सिंह ३. राम सिंह
शूरवीर सिंह-१. कुलदेव सिंह २. शिवचरण सिंह ३. दिगंबर सिंह
मंगल सिंह के वंशज
पहली पत्नी- १.बनू सिंह
दूसरी पत्नी- १.केदारू सिंह
बनू सिंह-१. चिन्द्रू सिंह २. श्रीचंद सिंह
केदारू सिंह-१. जुणू सिंह
चिन्द्रू सिंह-
पहली पत्नी- १.बद्री सिंह २. सरोप सिंह ३. गोकल सिंह
दूसरी पत्नी- १.अमर सिंह २. रूप सिंह(कोई पुत्र नहीं)
श्रीचंद सिंह-१.
पहली पत्नी- १. भौंपा सिंह
दूसरी पत्नी- १. कंठू सिंह २. मूर्ती सिंह
जुणू सिंह- १. मैन्दर सिंह
बद्री सिंह-१. टंखू सिंह
सरोप सिंह-१. रेबत सिंह २. कुंदन सिंह ३. होशियार सिंह ३. दलेब सिंह (माता की बीमारी से मौत हुई)
गोकल सिंह- १.गुलाब सिंह २. प्रेम सिंह २. दर्शन सिंह
अमर सिंह-१. छौन्दाड़ सिंह २. कल्याण सिंह
कंठू सिंह-१. भैरव सिंह
मूर्ती सिंह-१. मोर सिंह २. मकान सिंह
भौंपा सिंह- १. मक्खन सिंह
मैन्दर सिंह-१. पूरण सिंह २. कुंवर सिंह ३. भगवान सिंह
टंखू सिंह-
पहली पत्नी- १. बुध्धि सिंह
दूसरी पत्नी- १. रमेश सिंह २. महिपाल सिंह ३. जयपाल सिंह ३. मस्तान सिंह
गुलाब सिंह-१. राजेंद्र सिंह
प्रेम सिंह-१. जगमोहन सिंह २. राजेंद्र सिंह ३. रवि सिंह ४. विनोद सिंह
दर्शन सिंह-
पहली पत्नी- १. शोबन सिंह
दूसरी पत्नी- १. जोत सिंह २. आनंद सिंह
रेबत सिंह-१. सुन्दर सिंह २. मोर सिंह ३. रुकम सिंह
कुंदन सिंह-१. *जगमोहन सिंह २. राजेश सिंह
होशियार सिंह-१. त्रिलोक सिंह २. जसबीर सिंह ३. शूरवीर सिंह
छौन्दाड़ सिंह-१. बिक्रम सिंह २. धन सिंह ३. बलबीर सिंह ४. रघुबीर सिंह
कल्याण सिंह-१. सूरत सिंह २. दयाल सिंह ३. सुन्दर सिंह ४. पूर्ण सिंह
भैरव सिंह-१. शूरवीर सिंह २. रुकम सिंह ३. प्रकाश सिंह ४. कलम सिंह
मक्खन सिंह-१.गोबिंद सिंह २. भगवान सिंह ३. दर्मियान सिंह ४. हरदेव सिंह
मोर सिंह-१. राजेंदर सिंह २. सुरेन्द्र सिंह
पूरण सिंह-१. करण सिंह २. भगत सिंह ३ गजपाल सिंह
कुंवर सिंह-१. नत्था सिंह २. मनोज सिंह
भगवान सिंह-१. रविन्द्र सिंह

 साभार :  जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"

Sunday, 11 September 2016

वो भूली दास्ताँ....


तस्वीरें बोलती हैं ....

वो भूली दास्ताँ....लो फिर याद आ गयी ... !!

               अपने साजो-सामान के साथ तसल्ली से प्रतीक्षा बेंच पर बैठकर उबले हुए भुट्टे का आनंद लेते हुए बुजुर्ग महोदय को शायद अचानक कुछ याद आ गया ! और थम कर कुछ सोचने लगे !!
               एक ऑफिस में कर्मचारियों का लंच समय समाप्त होने की प्रतीक्षा में एक बुजुर्ग ..