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Friday, 20 May 2016

निंदा रस !



निंदा रस !!

        कई दिनों से लिखने की सोच रहा था लेकिन  कुछ दोस्त टांग खींच लेते थे,अपनी टांग छुड़ाने के फेर में लिखने का वक़्त ही नही मिल पाया ..भला ऐसे दोस्तों के टांग खिंचाई सम्मान को छोड़कर उनका अपमान कैसे कर सकता था !
       खैर आज दोनों टांगों को सुरक्षित कर आपसे मुखातिब हूँ ..!!
        वैसे श्रृंगार रस और वीर रस पर कुछ लिखने या चर्चा करने के लिए अनुकूल माहौल चाहिए लेकिन रसों में सर्वश्रेष्ठ “ निंदा रस “ के लिए माहौल की कोई आवश्यकता नही.जब चाहो और जहाँ चाहो मध्यम या कर्णभेदी आवाज़ में हो जाइये शुरू. खेल-तमाशे की तरह डुग-डुगी बजाने की आवश्यकता भी नही !! शुभ चिन्तक और अशुभ चिन्तक सभी उचक-उचक कर सुनने को तत्पर मिल जायेंगे.
       निंदा रस कई प्रकार के होते हैं मोटे तौर पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, वैसे कुछ जो निंदा रस में डी.लिट्.कर चुके है, वो “ मौन निंदा रस ” में अधिक विश्वास रखते हैं लेकिन हम अभी निचली कक्षा  के छात्र हैं तो इस विधा के बारे में चर्चा करना  हमारी मेधा शक्ति से परे की बात है..      

        हलके से मत लीजिये, कबीर दास जी जैसे संत ने इन्ही निंदको से तंग आकर ही “ निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छंवाय “ लिखकर निंदको के सामने आत्मसमर्पण किया होगा !!!
        हरिशंकर परसाई जी ने तो “ निन्दा “ कहानी लिखकर अपनी भंड़ास निकाल ली लेकिन मुझे लगता है इस पर एक उपन्यास लिखा जाना चाहिए !! उसके बाद भी ऊबन नहीं होगी।
      अभी गर्मियों की छुट्टियों में भरी गर्मी में मैं अपनी बाइक पर तीन बड़े काले बैग( जनगणना,आर्थिक गणना और वोटर पहचान पत्र) व्यवस्थित कर रहा था, की पड़ोस के शर्मा जी ने बड़े आदर में कहा.  “ प्रणाम गुरु जी “ उनका मुस्कराता चेहरा देखकर मेरे पसीने टपकते चेहरे पर भी मुस्कराहट खिल आयी. आगे बोले ..” आजकल गुरुजनों की ही मौज है पूरे दो महीने मौज ही मौज ! ” अब तो हमारा चेहरा पास में टिफिन लिए पत्नी भी देखकर घबरा गयी.. खैर ! थैलों के कारण टिफिन को बाइक पर जगह न मिल सकी .. !!  चलना था इस कारण चाहते हुए भी शर्मा जी पर भंडास न निकाल सका !!
   फेसबुक की बात न हो तो सरासर नाइंसाफी ही होगी. कुछ साथी, पोस्ट पर अधिक लाइक आने के कारण अन्दर ही अन्दर इतना कुढ़ते हैं कि अपने अन्दर हो रही ,इस रस की अधिकता को  “ उलटी सदृश ” कमेन्ट के रूप में निकालकर अपनी भड़ास निकालने से परहेज नही करते..!! बेशक वो उलटी उन्ही को फिनाइल डालकर पोछे से साफ़ करनी पड़ती है..लेकिन वो पोछा लगाकर भी “निंदा रस” का परमानन्द लेना चाहते हैं. कुछ छुट भैया “निंदा रस” के शिक्षार्थी  उनके उलटी रुपी कमेन्ट को तुरंत लाइक कर यह जताना चाहते हैं कि हम भी इस रस के अध्य्यन में पूरी रूचि से कृत संकल्प हैं !!!
      भाईचारे के लिए ऐसे लोग आपके साथ मिलकर जोर-शोर से नारे लगते हुए चलेंगे, कुछ दूर चलकर जब आप पीछे मुड़ कर देखेंगे तो स्वयं को अकेला ही पाएंगे. आपकी लोकप्रियता के कारण आपके साथ रहकर ऐसे लोग आपके साथियों में चापलूसी द्वारा अपनी पहचान बनाते हैं  और आपके साथियों के साथ गुटबंदी करके अपना उल्लू साध लेते हैं !! क्योंकि  भौतिकवादी युग में चापलूसी खूब  सिर चढ़कर बोलती है और उसका कोई तोड़ भी नहीं !!!
ऐसे लोगों को सुधारा तो नही जा सकता लेकिन बस इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि....
       “ खुदा तू हमें इन दोस्तों से बचाए रखना,
             दुश्मनों से हम खुद ही निपट लेंगे “




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