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Sunday, 15 May 2016

ग्लैमरस मंहगाई डायन..


ग्लैमरस मंहगाई डायन..

                                                                     यूँ ही बैठे ठाले !!
                लोक सभा चुनाव के बाद से मंहगाई का धारदार चाकू से दैहिक विच्छेदन करने वाले नेताओं, मीडिया के बुद्धिजीवियों को मिस कर रहा हूँ।
               उस भावमय वातावरण का मुरीद हो गया था जब नेता जी टमाटर, आलू व प्याज के प्रति उमड़े अगाध प्रेम में मंचों पर आँसू बहाते थे.. छाती पीटते थे ... इन सब्जियों की माला गले में डालकर घूमते थे !
इलैक्ट्रानिक मीडिया, सोशल मीडिया, सार्वजनिक मंचों आदि सभी जगहों पर खोज लिया कहीं भी मंहगाई के बारे में चर्चा नहीं !! बेचारी मंहगाई डायन !! सोचता हूँ .. बुद्धिजीवियों की फटकार से आहत होकर सात समंदर पार चली गई है ! या नेताओं के अश्रु सैलाब में बहकर उसने बंगाल की खाड़ी में जल समाधि ले ली है!
              अब न ग्लैमरस मंहगाई डायन के बारे में चर्चा है न " मंहगाई डायन खात जात है " जैसा लोकप्रिय व कर्णप्रिय गीत ही कहीं सुनाई देता है !
              सोचता हूँ दूसरे की दही को हम बिना चखे भी खट्टा बता सकने का दुस्साहस कर सकते हैं ! लेकिन अपनी दही खट्टी होने के बावजूद भी उसे खट्टा बता सकने की साहस भला हममें कहाँ !!....

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