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Sunday, 29 May 2016

श्रद्धांजलि ..



             25 अगस्त 1943 को आज़ाद हिन्द फौज पूर्ण सेनापतित्व ग्रहण करने के पश्चात् नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने रंगून में बहादुर शाह के मकबरे पर भारत के अंतिम बादशाह को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा --
          “ हम भारतीय धार्मिक विश्वासों को अलग रख बहादुरशाह की याद स्मरण करते हैं, इसलिए नही कि वे वही पुरुष थे जिन्होंने शत्रुओं से लड़ने के लिए भारतीयों का आह्वान किया था बल्कि इसलिए कि उनके झंडे के नीचे सभी प्रान्तों, सभी धर्मों को मानने वालों ने युद्ध किया था. वह पुरुष, जिसके पावन झंडे के नीचे स्वतंत्रता के इच्छुक हिन्दू, मुस्लमान और सिक्खों ने साथ-साथ लड़ाई लड़ी थी.”
         स्वयं बादशाह ने कहा था – “ जब तक भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों की आत्माओं में विश्वास का अंतिम कण बाकी है, भारत की तलवार लन्दन की छाती को लगातार छेदती रहेगी.”
       आज राष्ट्रीय मामलों पर आम जनता में दलगत निष्ठाओं से ऊपर उठकर समालोचक चिंतन की परम आवश्यकता है, क्योंकि हम किसी राजनैतिक दल द्वारा किये जा रहे गलत काम का तो विरोध करते हैं और किया भी जाना चाहिए लेकिन जब वही कार्य ऐसा राजनैतिक दल करता है जिसकी विचार धारा से हम प्रेरित हैं या उस विचार धारा को हम पोषित करते हैं, तो हम उस स्थिति में मौन साध लेते हैं या उस कृत्य को उचित ठहराने के लिए कई तर्क देने लगते हैं....


Friday, 20 May 2016

निंदा रस !



निंदा रस !!

        कई दिनों से लिखने की सोच रहा था लेकिन  कुछ दोस्त टांग खींच लेते थे,अपनी टांग छुड़ाने के फेर में लिखने का वक़्त ही नही मिल पाया ..भला ऐसे दोस्तों के टांग खिंचाई सम्मान को छोड़कर उनका अपमान कैसे कर सकता था !
       खैर आज दोनों टांगों को सुरक्षित कर आपसे मुखातिब हूँ ..!!
        वैसे श्रृंगार रस और वीर रस पर कुछ लिखने या चर्चा करने के लिए अनुकूल माहौल चाहिए लेकिन रसों में सर्वश्रेष्ठ “ निंदा रस “ के लिए माहौल की कोई आवश्यकता नही.जब चाहो और जहाँ चाहो मध्यम या कर्णभेदी आवाज़ में हो जाइये शुरू. खेल-तमाशे की तरह डुग-डुगी बजाने की आवश्यकता भी नही !! शुभ चिन्तक और अशुभ चिन्तक सभी उचक-उचक कर सुनने को तत्पर मिल जायेंगे.
       निंदा रस कई प्रकार के होते हैं मोटे तौर पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, वैसे कुछ जो निंदा रस में डी.लिट्.कर चुके है, वो “ मौन निंदा रस ” में अधिक विश्वास रखते हैं लेकिन हम अभी निचली कक्षा  के छात्र हैं तो इस विधा के बारे में चर्चा करना  हमारी मेधा शक्ति से परे की बात है..      

        हलके से मत लीजिये, कबीर दास जी जैसे संत ने इन्ही निंदको से तंग आकर ही “ निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छंवाय “ लिखकर निंदको के सामने आत्मसमर्पण किया होगा !!!
        हरिशंकर परसाई जी ने तो “ निन्दा “ कहानी लिखकर अपनी भंड़ास निकाल ली लेकिन मुझे लगता है इस पर एक उपन्यास लिखा जाना चाहिए !! उसके बाद भी ऊबन नहीं होगी।
      अभी गर्मियों की छुट्टियों में भरी गर्मी में मैं अपनी बाइक पर तीन बड़े काले बैग( जनगणना,आर्थिक गणना और वोटर पहचान पत्र) व्यवस्थित कर रहा था, की पड़ोस के शर्मा जी ने बड़े आदर में कहा.  “ प्रणाम गुरु जी “ उनका मुस्कराता चेहरा देखकर मेरे पसीने टपकते चेहरे पर भी मुस्कराहट खिल आयी. आगे बोले ..” आजकल गुरुजनों की ही मौज है पूरे दो महीने मौज ही मौज ! ” अब तो हमारा चेहरा पास में टिफिन लिए पत्नी भी देखकर घबरा गयी.. खैर ! थैलों के कारण टिफिन को बाइक पर जगह न मिल सकी .. !!  चलना था इस कारण चाहते हुए भी शर्मा जी पर भंडास न निकाल सका !!
   फेसबुक की बात न हो तो सरासर नाइंसाफी ही होगी. कुछ साथी, पोस्ट पर अधिक लाइक आने के कारण अन्दर ही अन्दर इतना कुढ़ते हैं कि अपने अन्दर हो रही ,इस रस की अधिकता को  “ उलटी सदृश ” कमेन्ट के रूप में निकालकर अपनी भड़ास निकालने से परहेज नही करते..!! बेशक वो उलटी उन्ही को फिनाइल डालकर पोछे से साफ़ करनी पड़ती है..लेकिन वो पोछा लगाकर भी “निंदा रस” का परमानन्द लेना चाहते हैं. कुछ छुट भैया “निंदा रस” के शिक्षार्थी  उनके उलटी रुपी कमेन्ट को तुरंत लाइक कर यह जताना चाहते हैं कि हम भी इस रस के अध्य्यन में पूरी रूचि से कृत संकल्प हैं !!!
      भाईचारे के लिए ऐसे लोग आपके साथ मिलकर जोर-शोर से नारे लगते हुए चलेंगे, कुछ दूर चलकर जब आप पीछे मुड़ कर देखेंगे तो स्वयं को अकेला ही पाएंगे. आपकी लोकप्रियता के कारण आपके साथ रहकर ऐसे लोग आपके साथियों में चापलूसी द्वारा अपनी पहचान बनाते हैं  और आपके साथियों के साथ गुटबंदी करके अपना उल्लू साध लेते हैं !! क्योंकि  भौतिकवादी युग में चापलूसी खूब  सिर चढ़कर बोलती है और उसका कोई तोड़ भी नहीं !!!
ऐसे लोगों को सुधारा तो नही जा सकता लेकिन बस इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि....
       “ खुदा तू हमें इन दोस्तों से बचाए रखना,
             दुश्मनों से हम खुद ही निपट लेंगे “




Sunday, 15 May 2016

“पाला-बदल“ नेता ; राजनैतिक कोढ़






“पाला-बदल“ नेता ; राजनैतिक कोढ़


       कितना अच्छा हो यदि ऐन चुनावों के वक्त मौकापरस्त और मूल्यरहित राजनीति करने वाले "पाला-बदल" नेताओं को बड़े राष्ट्रीय दल पाला बदलने का मौका न देकर, बहिष्कार कर उनको आईना दिखाते !! जिससे यह प्रवृत्ति हतोत्साहित होती . आश्चर्य होता है !! जो नेता, चुनाव से कुछ दिन पूर्व तक पानी पी-पी कर जिस दल का विरोध करते दीखते हैं, सम्बंधित दल के चुनावों में अच्छी स्थिति में होने पर, ऐन चुनाव के वक्त, उसी दल की गोदी में बैठकर उसका महिमा गान प्रारंभ कर देते हैं !! क्या इतनी जल्दी विचार परिवर्तन हो सकते हैं ?? मेरे विचार से ये विचार परिवर्तन न होकर मौकापरस्ती या हित साधना ही कहा जाएगा. और इसी प्रकार के नेता अनैतिक कार्यों को बढ़ावा देते हैं !! भला ऐसे लोगों को अपने दल में शामिल कर ये राष्ट्रीय दल किस प्रकार, राजनीतिक सुचिता बनाये रखने के दावे कर सकते हैं !! समझ नही आता !!
      अगर ऐसे नेताओं की पृष्ठभूमि का अध्ययन किया जाय तो उनकी निष्ठा कभी किसी एक दल के साथ नही रही !! उनकी राजनीति, आदर्शों व राजनैतिक मूल्यों की न होकर, सदैव मौकापरस्ती की धुरी के इर्द-गिर्द ही घूमती है ..और मौकापरस्त कभी किसी का नही हो सकता ! आश्चर्य तब होता है जब राष्ट्रीय स्तर के दल ऐसे लोगों का अपने दलों में पूरे “बैंड-बाजे” के साथ स्वागत करते दीखते हैं !!
राजनैतिक सुचिता हर अनैतिक कार्य को रोकने का साधन है और नैतिकता परिपूर्ण लक्ष्य ( साध्य ) को प्राप्त करने के लिए साधन भी नैतिकता पर आधारित ही होने चाहिए ..
      दरअसल सम्यक लाभ के लोभ में राजनैतिक दल भी आदर्शों और मूल्यों को ताक पर रख देते हैं लेकिन कुछ सम्यक लाभ लम्बे समय में स्थापित आदर्शों पर कुठाराघात कर अवनति की ओर ही ले जाते हैं .. हालाँकि सभी दल “ पाला-बदल “ नेताओं के कृत्यों से त्रस्त हैं लेकिन इस दिशा में पहल करना ख़ुदकुशी करना ही समझते हैं !!
      दरअसल अनैतिक कार्यों के लिए सभी दल हाय-हल्ला तो करते दीखते हैं लेकिन अपने कुर्ते में कितने दाग और लगा दिए हैं.. इस बात को नजरअंदाज ही करते हैं !!
      मतदाता किसी पार्टी विशेष को उसके सिधान्तों और कार्यों के आधार पर वोट देते हैं लेकिन ये नकारे गए “ पाला-बदल “ नेता ऐन चुनाव के वक्त उसी दल में शामिल होकर मतदाता के साथ छल ही करते हैं !!
      क्या, ठीक चुनावों के वक़्त मौकापरस्त, मूल्यरहित और स्वार्थी नेताओं की इस प्रवृत्ति पर कभी अंकुश लग सकेगा ?? क्या मतदाता राजनैतिक दलों की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने हेतु ऐसे “ पाला-बदल “ नेताओं को स्वयं से ही ख़ारिज कर सकेंगे ?? क्या आम जनता को इस राजनैतिक कोढ़ से कभी मुक्ति मिल सकेगी ??

ग्लैमरस मंहगाई डायन..


ग्लैमरस मंहगाई डायन..

                                                                     यूँ ही बैठे ठाले !!
                लोक सभा चुनाव के बाद से मंहगाई का धारदार चाकू से दैहिक विच्छेदन करने वाले नेताओं, मीडिया के बुद्धिजीवियों को मिस कर रहा हूँ।
               उस भावमय वातावरण का मुरीद हो गया था जब नेता जी टमाटर, आलू व प्याज के प्रति उमड़े अगाध प्रेम में मंचों पर आँसू बहाते थे.. छाती पीटते थे ... इन सब्जियों की माला गले में डालकर घूमते थे !
इलैक्ट्रानिक मीडिया, सोशल मीडिया, सार्वजनिक मंचों आदि सभी जगहों पर खोज लिया कहीं भी मंहगाई के बारे में चर्चा नहीं !! बेचारी मंहगाई डायन !! सोचता हूँ .. बुद्धिजीवियों की फटकार से आहत होकर सात समंदर पार चली गई है ! या नेताओं के अश्रु सैलाब में बहकर उसने बंगाल की खाड़ी में जल समाधि ले ली है!
              अब न ग्लैमरस मंहगाई डायन के बारे में चर्चा है न " मंहगाई डायन खात जात है " जैसा लोकप्रिय व कर्णप्रिय गीत ही कहीं सुनाई देता है !
              सोचता हूँ दूसरे की दही को हम बिना चखे भी खट्टा बता सकने का दुस्साहस कर सकते हैं ! लेकिन अपनी दही खट्टी होने के बावजूद भी उसे खट्टा बता सकने की साहस भला हममें कहाँ !!....