25 अगस्त 1943 को आज़ाद हिन्द फौज पूर्ण सेनापतित्व ग्रहण करने के पश्चात् नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने रंगून में बहादुर शाह के मकबरे पर भारत के अंतिम बादशाह को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा --
“ हम भारतीय धार्मिक विश्वासों को अलग रख बहादुरशाह की याद स्मरण करते हैं, इसलिए नही कि वे वही पुरुष थे जिन्होंने शत्रुओं से लड़ने के लिए भारतीयों का आह्वान किया था बल्कि इसलिए कि उनके झंडे के नीचे सभी प्रान्तों, सभी धर्मों को मानने वालों ने युद्ध किया था. वह पुरुष, जिसके पावन झंडे के नीचे स्वतंत्रता के इच्छुक हिन्दू, मुस्लमान और सिक्खों ने साथ-साथ लड़ाई लड़ी थी.”
स्वयं बादशाह ने कहा था – “ जब तक भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों की आत्माओं में विश्वास का अंतिम कण बाकी है, भारत की तलवार लन्दन की छाती को लगातार छेदती रहेगी.”
आज राष्ट्रीय मामलों पर आम जनता में दलगत निष्ठाओं से ऊपर उठकर समालोचक चिंतन की परम आवश्यकता है, क्योंकि हम किसी राजनैतिक दल द्वारा किये जा रहे गलत काम का तो विरोध करते हैं और किया भी जाना चाहिए लेकिन जब वही कार्य ऐसा राजनैतिक दल करता है जिसकी विचार धारा से हम प्रेरित हैं या उस विचार धारा को हम पोषित करते हैं, तो हम उस स्थिति में मौन साध लेते हैं या उस कृत्य को उचित ठहराने के लिए कई तर्क देने लगते हैं....