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Monday, 5 October 2015

राजा नंगा है


राजा नंगा है

            काफी समय पहले पढ़ी, हैंस क्रिश्चियन एंडरसन द्वारा लिखित “ राजा नंगा है “ आज भी प्रासंगिक है और समाज को सही दिशा दे सकने में समर्थ है.
           एक राजा को कपड़ों का बहुत शौक था. वह देश-विदेश के दर्जियों से वह कपड़ों के डिजायनों की बात करता रहता था. जो भी उसके कपड़ों की प्रशंसा करता उसको वह बहुत इनाम देता था
दो विदेशी ठगों ने राजा को ठगने की योजना बनायीं. राजा के सामने उपस्थित हो उन्होंने कहा हम आपके लिए सोने और हीरे के धागों से बनी ऐसी पोषाक बना सकते हैं जिसको किसी ने सपने में भी नही देखा होगा. लेकिन शर्त ये है कि उसको मूर्ख और पद के अयोग्य व्यक्ति नहीं देख सकता है !!
राजा ने बहुत सारा सोना और हीरा साथ में सूत तैयार करने के लिए दो खडडियाँ लगाकर पोशाक तैयार करने का आदेश दे दिया. ठग दिन-रात खडडियों के चक्कर लगाते काटने लगे मानो वे कपडा तैयार कर रहे हों जबकि वे कपडा बनाने का अभिनय कर रहे थे..
            कई दिन बीत जाने के बाद राजा ने एक मंत्री से काम में तरक्की देखने को कहा.. मंत्री दर्जियों के पास पहुंचा तो वहां उसे खडडियों के अलावा कुछ न दिखा. लेकिन राजा उसे मूर्ख व पद के अयोग्य न समझे इसलिए उसने वापस आकर राजा से कहा, “ हुजुर बहुत बढ़िया कपडा तैयार हो रहा है “ राजा बहुत खुश हुआ. उसने समय-समय पर कई मंत्रियों को भेजा लेकिन सभी ने तैयार हो रहे कपडे को बहुत सुन्दर बताया !!
            अब राजा के मन में भी जिज्ञासा हुई वो भी वहां गया लेकिन उसको कुछ न दिखाई दिया तो वो सोचने लगा, क्या मेरे मंत्री मुझसे भी अधिक बुद्धिमान हैं !! क्या मैं मूर्ख हूँ !! क्या मैं राजा के काबिल नहीं !! लेकिन फिर उसने सोचा, ये बात किसी को पता नहीं लगनी चाहिए. ये सोचकर राजा ने खडडियों की तरफ देखकर कहा, “ कितना सुन्दर कपडा है, सोने और हीरे की कितनी सुन्दर बुनाई की गयी है!!” महल में पहुंचकर राजा ने दरबारियों से कहा अगले सप्ताह एक बड़ा जुलूस निकलना उसमे में नए कपड़े पहनकर निकलूंगा.
              आखिर वो दिन भी आया ठगों ने राजा को कपडे उतारने को कहा और ऐसे हाव-भाव दिखाए जैसे वे सच में राजा को नयी पोशाक पहना रहे हों !! दरबारी और मंत्री स्वयं को मूर्ख और पद के अयोग्य समझे जाने के भय से वाह-वाह किये जा रहे थे.
              राजा नंगा ही हाथी पर सवार होकर राज्य में निकल पड़ा दरबारी पीछे-पीछे ..रास्ते में भीड़ भी मूर्ख समझे जाने के भय से राजा के कपड़ों (जो कि वास्तव में थे ही नहीं) की तारीफ में वाह-वाह करती, लेकिन तभी भीड़ में से एक बच्चा बोल पड़ा, ‘राजा नंगा है, उसके पास कपडे नहीं हैं ! “
यह सुनकर बच्चे के पिता ने कहा इस बच्चे की बात सुनो, “ यह कह रहा है कि राजा नंगा है !! “
फिर तो भीड़ भी चिल्लाने लगी “ राजा नंगा है !! राजा नंगा है !!”
               अचानक राजा को अहसास हुआ कि ठगों ने उसको ठग लिया है. उसे शर्म आई लेकिन असली बात को जाहिर करने में उसे और भी शर्मिंदगी महसूस हुई ! इसलिए उसने लोगों को यही दिखाया कि लोग गलत है और वो सही है !! शान से वह जुलूस में आगे बढ़ता रहा जैसे उसने बहुत शानदार कपडे पहन रखे हों !! भीड़ अब भी चिल्ला रही थी, “ राजा नंगा है !! राजा नंगा है !!”
               प्रश्न उठता है कि क्या सच को सच और गलत को गलत कह सकने की बच्चे जैसी निश्छल मासूमियत हम में है !!
              बेशक, अपनी मन: स्थिति को संतृप्त करने व व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते, विवेक को गिरवी रख देते हैं,फलस्वरूप किसी तथ्य या घटना का बिना तार्किक विश्लेषण किए उत्साहित होकर हम भीड़ मे सम्मिलित होकर पैरवी करने लगते हैं लेकिन देर सबेर हकीकत सबके सामने आ ही जाती है !! इस से हमारी सार्वजनिक विश्वसनीय व स्वीकार्यता पर प्रश्न लग जाता है ! और हम स्वयं को किंकर्तव्यविमूढ़ पाते हैं !!

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