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Monday, 13 July 2015

संस्कारों में स्वच्छता भाव हस्तांतरण

 

संस्कारों में स्वच्छता भाव हस्तांतरण : एक मंथन


                                         आदर्श जिए जाते हैं और गढ़े जाते हैं स्वयं से,
                                मिशाल कायम नहीं होती दूसरों को बताने और सुनाने से...

                                                              .. विजय जयाड़ा
       बच्चे को स्वच्छता के संस्कार, सर्वप्रथम घर से फिर परिवेश से तदोपरांत विद्यालय में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होते हैं. इस सम्बन्ध में माता-पिता,अध्यापक और स्थानीय परिवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. परिवेश को एकाएक परिवर्तित करना तो अपने बूते की बात नहीं लेकिन अध्यापक के रूप विद्यालय में संस्कार दिए जा सकते हैं, साथ ही माता-पिता को भी इस सम्बन्ध में प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे बच्चे में घर से ही स्वच्छता के प्रति सकारात्मक भाव उत्पन्न हो सकें..
       हम विदेशी संस्कृति के फूहड़पन की नक़ल तो खूब करते हैं लेकिन उनकी राष्ट्र को समर्पित दिनचर्या को समझने का प्रयास नहीं करते !! जापान निवासी जब पालित कुत्ते को घुमाने ले जाते हैं तो कुत्ते द्वारा की गयी गन्दगी उठाने के लिए अपने साथ एक थैली और गन्दगी को जमीन से उठाने के लिए आवश्यक सामान अनिवार्य रूप से साथ ले जाते हैं
       विद्यालय में अध्यापक का इस दिशा में स्वयं का आचरण व व्यवहार , बच्चों के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मार्गदर्शी व संस्कारप्रद होता है.
       हमारे विद्यालय के परिश्रमी सफाई कर्मचारी को पूरे समय विद्यालय के बड़े परिसर व बड़े भवन की सफाई करने से फुर्सत नहीं मिल पाती . व्यवस्था ये भी है कि इस तरह के सफाई कार्य, बाहर से किसी को बुलाकर उचित मजदूरी देकर करवा लिए जाएँ.
       लेकिन यदि बच्चों को संस्कार देने हैं तो स्वयं भी इस दिशा में कुछ पहल की जा सकती है.. इससे बच्चों में अप्रत्यक्ष रूप से श्रम के प्रति निष्ठां व सम्मान का भाव भी जागृत होता है.
       अब आप निश्चित तौर पर विचार कर रहे होंगे कि अध्यापक का काम पढ़ाना होता है, साफ़-सफाई करना नहीं ! तो साथियों, मध्यावकाश के दौरान व जब बच्चे लाइब्रेरी कक्ष में दूसरी अध्यापिका के पास चले जाते हैं उस समयांतराल का सदुपयोग कर मैंने अपने कक्षा-कक्ष की टाइलें थोडा-थोडा कर के चार दिन में चमका दी ..
       आखिर मुझे ही तो इस कक्षा कक्ष में बच्चों के साथ दिन भर अध्यापन करना होता है ..
        केवल व्यवस्था को उलाहना देकर इतिश्री कर देना भी उचित नहीं “ अपना हाथ जगन्नाथ “ और आत्मसंतोष के साथ " एक पंथ कई काज " .. भी हो जाते हैं..
सरकार काफी तनख्वाह देती है यदि अपने पेशे से हटकर कुछ अतिरिक्त कार्य भी कर लिया जाय तो ये स्वयं के लिए संतोषप्रद तो होगा ही साथी आत्मविश्वास भी बढेगा ..


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