बस यूँ ही बैठे ठाले-ठाले ...
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोये।
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोये॥
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोये॥
सोच रहा था !! हम यहाँ फेसबुक पर दिन-रात ज्ञान बांटते हैं.. सरकार किसी की भी हो लेकिन व्यवस्था में, समाज में.. ढेरों कमियाँ खोजकर सरकार को कोसने व समस्याओं पर बढ़-चढ़कर बहस करने में भी हमें महारत हासिल है ! तारीफ़ का हुनर भी हम सभी में खूब है !!
हम सभी की आदर्शवादी पोस्ट्स से महसूस होता है जैसे हम सभी फेसबुक यूजर भगवान् स्वरुप हैं .. फिर भी अव्यवस्था !!
खैर .. लोकतंत्र है सब चलेगा ! लेकिन फिर भी सोचता हूँ कि हम मानव हैं .. भगवान् नहीं !! कमियाँ हम सभी में हैं बेशक उनका स्वरुप अलग-अलग हो सकता है.
जिस तरह हम दूसरे में कमी खोजते हैं या दोषारोपण करते हैं क्या हम उसी तर्ज पर अपनी व्यक्तिगत कमियों, अवगुणों या दोषों को भी सहजता से स्वीकार कर उन पर चर्चा कर सकने का साहस और आत्म सुधार की व्यक्तिगत मन: स्थिति रखते है !!
या यूँ ही "फेसबुक बाबा" के रूप में कॉपी-पेस्ट और वाल पेपर पोस्ट करके निठल्ला ज्ञान ही बांचते रहेंगे ....
सोचता हूँ सवा अरब की आबादी के देश में " शिकायती फोंपू " बनने से बेहतर है कि उपलब्ध संसाधनों से व्यक्तिगत स्तर पर स्वयं के चिड़ि प्रयासों द्वारा आदर्श प्रस्तुत किए जाएं. इस तरह समाज में सकारात्मक सोच अवश्य विकसित हो सकती है।
हम सुधरेंगे... जग सुधरेगा .. हम बदलेंगे.. जग बदलेगा ..
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