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Monday, 29 August 2016

एक गौरक्षक से भेंट




एक गौरक्षक से भेंट..........

मूर्धन्य व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी का व्यंग्य, " एक गौरक्षक से भेंट " पढ़ रहा था... व्यंग्य रोचक, सारगर्भित व आज भी प्रासंगिक है। एक अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ .... जिसमें परसाई जी का गौ रक्षक आन्दोलन में सम्मिलित होने जा रहे एक स्वामी जी से संवाद है ___

– स्वामीजी, जहाँ तक मैं जानता हूँ, जनता के मन में इस समय गोरक्षा नहीं है, महँगाई और आर्थिक शोषण है। जनता महँगाई के ख़िलाफ़ आंदोलन करती है। जनता आर्थिक न्याय के लिए लड़ रही है। और इधर आप गोरक्षा-आंदोलन लेकर बैठ गए हैं। इसमें तुक क्या है ?
– बच्चा, इसमें तुक है। तुम्हे अंदर की बात बताता हूंl देखो, जनता जब आर्थिक न्याय की माँग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज़ में उलझा देना चाहिए, नहीं तो वह ख़तरनाक हो जाती है। जनता कहती है – हमारी माँग है महँगाई कम हो, मुनाफ़ाख़ोरी बंद हो, वेतन बढ़े,शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते हैं कि नहीं, तुम्हारी बुनियादी माँग गोरक्षा है, आर्थिक क्रांति की तरफ़ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूँटे से बाँध देते हैं। यह आंदोलन जनता को उलझाए रखने के लिए है।