माँ दगड़ी एक और बग्वाल
घौर का दाना बुजुर्गु दगड़ि बग्वालि कु आनंद ही कुछ और छ !!
बालापन मा माँ, हम तैं पटाखा नि फोड़ना का खातिर पुल्योंदि पत्योंदि थै ! पटाखों सि डरदि थै ! अब माँ कु शरीर दानु व्है गि ! आज मैन् माँ तैं पुल्ये पतैकि फुलझड़ी जल्वे दे !
अनुभव की बात छ कि दाना मन्खी और अबोध बच्चों कु स्वभाव एक जन होंदु ।
माँ के साथ मिलकर दीपावली का आनंद ही अलग है !!
बचपन में माँ, हमको पटाखे न फोड़ने के लिए मनाती थी। अब माँ बुजुर्ग हो गई है !! आज मैंने माँ को फुलझड़ी जलाने के लिए मना दिया !!
अनुभव की बात है कि बुजुर्गों और अबोध बच्चों का स्वभाव एक जैसा होता है !!